उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी,
हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी,
अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहना,
रसूखदार हवेली के मालिकों की, धमक हुआ करती थी।
वक्त की परछाइयों तले, आज सबकुछ वीरान हो गया,
चोखट वीरान,देहरी ख़ामोश,आंगन में रमक हुआ करती थी।